रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद

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... फागुन का महीना था, संधया का समय। एक स्त्री घास बेचकर जा रही थी। मजदूरों ने अभी-अभी काम से छुट्टी पाई थी। दिन भर चुपचाप चरखियों के सामने खड़े-खड़े उकता ...

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